वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (5)
महीनों पर महीनें ऐसे ही बितते गए....। पन्द्रह महीने बीत चुके थे और मेरा द्वितीय वर्ष भी पूरा हो चुका था...। लेकिन इन पन्द्रह महीनों में हमारे घर के आर्थिक हालात बहुत ज्यादा बिगड़ चुके थे...। ना सिर्फ पापा की आदतों की वजह से बल्कि पापा की एक बहुत बड़ी बेवकूफी या यूं कहें अपने भाइयों पर अंधे विश्वास ने हमारी जिंदगी बर्बादी तक ला दी थी....। दर असल.... पापा की शराब की लत का फायदा उठाकर मेरे चाचाओं ने हमारे हिस्से में आई एक छोटी सी दुकान अपने नाम लिखा दी थीं....। उसके अलावा दादाजी के छोड़कर गयें कर्जे में पांच लाख रुपये अतिरिक्त जोड़ दिए गए थे.... । इस बात का खुलासा खुद नशे की हालत में पापा ने मम्मी से किया....। घर में घमासान हो गया था... क्योंकि वो दुकान मेरे भाइयों के भविष्य के लिए मम्मी ने संभाल कर रखी थीं....। मरती क्या ना करतीं.... लड़ाई झगड़ों और किस्मत पर रोने के अलावा वो कर भी क्या सकतीं थीं....। हालात इतने बुरे हो चुके थे की मजबूरन दोनों भाइयों को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और दोनों नौकरी करने लगे....। एक भाई ने बारहवीं पास की थीं और दूसरे ने दसवीं...। लेकिन अब दोनों चार-पांच हजार महीने की सैलरी पर कपड़े की दुकान पर नौकरी करने लगे...। पापा इतनी ठोकरें खाने के बाद भी चाचा के घर आना जाना नहीं छोड़ रहें थे.... ना उनसे कुछ कहतें.... बल्कि वो ना जाने क्यूँ उनके इशारों पर नाचने लगे थे....। मुश्किल से ही पापा काम पर जातें थे.... और जब लौटते थे तो घर आने की बजाय सीधे चाचा के घर चले जाते थे.... जो भी कुछ कमाया पैसा होता था वो वहीं दे आतें थे....। ऊपर से घर पर नशे की हालत में आते थे....। पहले पहले मम्मी बहुत गुस्सा करतीं पर जब पापा पर कुछ असर ना होता तो मम्मी ने कहना छोड़ दिया...।
दिन ब दिन हालत से बद से बदतर इसलिए होतीं गयीं क्योंकि पापा कर्ज घटाने की बजाय बढ़ाने लगे थे....। उस कर्जे का ब्याज और किश्तें भरते भरते हमारे भूखों रहने के दिन आ गए थे....। मम्मी की बिमारी और घर की हालत ने उन्हें बहुत अधिक चिड़चिड़ा कर दिया था....। दोनों छोटे भाई भी अंदर ही अंदर पापा से घृणा करने लगे थे....।
घर में सिर्फ एक वक्त का खाना बनता था.... रात को दोनों भाई सिर्फ चाय बिस्किट खाकर सो जाते थे... कभी कभी वो भी अवाइड कर लेते थे...। मम्मी भी ऐसा ही करतीं थीं... और मैंने तो दोनों वक्त का खाना छोड़ दिया था.... पानी पीकर जितने दिन निकलते निकालती...बर्दाश्त के बाहर भूख होतीं तो ....थोड़ा कुछ खा लेतीं फिर पानी पीकर दिन काटती....। ऐसा महीनों तक चलता रहा....। पैसे की कमी की वजह से मैंने मेरे ससुराल में फोन करने भी बंद कर दिये.... उनके आतें तो थोड़ी बहुत बात हो जाती...। लेकिन सच कहूं तो ऐसे में वो सब बिल्कुल सुकून नहीं देता था...।
धीरे धीरे वक्त बीता और मैंने अंतिम वर्ष की पढ़ाई भी शुरू कर दी....।
दिन महीनों में और महीने सालों में बीत गयें....। मेरे अंतिम वर्ष के पेपर होने की तिथि आई और उसी वक्त पता चला की मेरी शादी भी उन्ही तारीखो को फिक्स की गई हैं....। अब पेपर्स दू... या शादी करूँ....।
शादी की तीन तिथियाँ मम्मी को बताई गई थीं... जिसमें दो उसी दिन की थीं जिस दिन मेरे पेपर्स थे जबकि तीसरी पेपर्स के दस दिन बाद की थीं...। उन सभी ने पेपर्स वाली तिथि तय की थीं...। जिसपर मम्मी ने भी उनको बिना मुझसे पूछे...हां कर दी थीं..। मैं जानती थीं मम्मी को बोलने का कुछ फायदा तो नहीं होगा फिर भी हिम्मत करके मम्मी के पास गई और उनसे अंतिम तिथि तय करने को कहा.... पहले तो मना ही कर दिया मम्मी ने की..... सामने हां कर दी हैं... ऐसे ना नहीं कर सकते...। लेकिन मेरी हालत पर पता नहीं उनको क्यूँ तरस आ गया और मम्मी ने अगले दिन फोन करके बात की...। मुझे लगा था सामने उनको कोई तकलीफ नहीं होगी... क्योंकि शायद वो पढ़ाई की महत्वता समझते हैं..। लेकिन उम्मीद के विपरीत वो आनाकानी करने लगे....। वजह ये थीं की वो मेरी ननद के ससुराल में तिथि तय कर चुके थे...। मम्मी को तो उन्होंने ना ही कर दिया...। मैं उसी दिन बुथ पर गयीं और इनसे बात की कि प्लीज घर पर बात करें कुछ दिनों की ही तो बात हैं मेरा पूरा साल बर्बाद हो जाएगा....। कम से कम मुझे पेपर्स तक इजाज़त दिलवा दिजिए.....।
इन्होंने बात निकाली नहीं निकाली मुझे पता नहीं पर वहां से कोई जवाब नहीं आया...। जो दिंनाक उन्होंने पहले तय की थीं वही फिक्स रखीं गई.....।
थक हारकर मैं एक अंतिम आग्रह लेकर मंदिर की ओर चल दी...। वहां घंटों बैठकर किसी चमत्कार की उम्मीद करने लगी...।
कहते हैं कभी कभी इंसानों को ना सही पर भगवान को तरस जरूर आ जाता हैं...। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ....। दो दिन बाद पता चला की तिथि बदल दी गई हैं.... क्योंकि ननद के ससुराल में कुछ आकस्मिक काम आ गया था....। मैं इस बात से खुश हो गई की चलो आखिर पेपर तो दे पाऊंगी....। परिणाम का इंतजार करने का तो वक्त कहां था....।
एक नयी जिंदगी की शुरुआत करने जा रहीं थी.... इस बात से खुश थीं पर मायके के हालात को लेकर चिंतित भी बहुत थीं...। क्या इस नयी शुरुआत से कुछ बदल पाएगा.... जानते हैं अगले भाग में....।
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kashish
27-Feb-2024 02:51 PM
Fantastic
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Shnaya
21-Feb-2024 01:14 PM
Nice one
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Mohammed urooj khan
21-Feb-2024 01:12 PM
शानदार भाग 👌🏾👌🏾👌🏾
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